सही पोर्टफोलियो बनाना हर निवेशक के लिए एक जरूरी काम , क्योंकि यह न केवल आपके फाइनेंशियल टारगेट्स को पूरा करने में मदद करता है, बल्कि बाजार के उतार-चढ़ाव से बचाने में भी मददगार साबित होता है। सही इनवेस्टमेंट स्ट्रैटजी के लिए इक्विटी और डेट के बीच संतुलन बनाना बेहद जरूरी है। ऐसा करके आप अपने रिस्क प्रोफाइल यानी जोखिम लेने की क्षमता और निवेश के लक्ष्य के हिसाब से रिस्क और रिटर्न में बैलेंस बना पाएंगे। एक सही और संतुलित पोर्टफोलियो बाजार की उथल-पुथल के बीच भी पॉजिटिव रिटर्न जेनरेट कर सकता है।
इक्विटी और डेट क्या है
इक्विटी और डेट, दोनों का अपना महत्व है। इक्विटी इनवेस्टमेंट आम तौर पर लंबी अवधि में हाई रिटर्न देता है, लेकिन इसके साथ हाई रिस्क भी जुड़ा रहता है। अगर आपका उद्देश्य लंबी अवधि में वेल्थ क्रिएशन करना है और इसके लिए आप रिस्क लेने को तैयार हैं, तो इक्विटी आपके लिए सही विकल्प हो सकता है। दूसरी ओर, पीपीएफ, एफडी और पोस्ट ऑफिस स्कीम्स जैसे डेट इनवेस्टमेंट्स स्टेबल और सुरक्षित रिटर्न देते हैं। . ऐसे निवेश आपके पोर्टफोलियों में जोखिम कम करने और बाजार की गिरावट के समय स्टेबिलिटी और सिक्योरिटी देते हैं।
इक्विटी और डेट की हिस्सेदारी
सही एसेट अलोकेशन आपके निवेश पोर्टफोलियो की रीढ़ है। यह तय करना कि आपके पोर्टफोलियो में कितनी हिस्सेदारी इक्विटी और कितनी डेट में होगी, आपके लंबी अवधि के लक्ष्यों और जोखिम लेने की क्षमता पर निर्भर करता है। युवा निवेशकों के लिए 70% इक्विटी और 30% डेट का अनुपात सही हो सकता है, जबकि रिटायरमेंट के करीब पहुंच रहे निवेशकों के लिए इक्विटी में 40% और डेट में 60% निवेश करना बेहतर रणनीति हो सकती है। समय-समय पर अपने पोर्टफोलियो की समीक्षा करके इसे अपने बदलते लक्ष्यों और बाजार की चाल के हिसाब से एडजस्ट करना भी बेहद जरूरी है।
पोर्टफोलियो रिबैलेंसिंग में निवेश
अपने पोर्टफोलियो को समय-समय पर रीबैलेंस करना किसी भी निवेशक की सफलता का बड़ा कारण हो सकता है। ऐसा करके आप अपने पोर्टफोलियो को वक्त के हिसाब से फिट बनाए रख सकते हैं। जब बाजार तेजी पर होता है और इक्विटी का हिस्सा बढ़ जाता है, तो मुनाफा निकालकर उसे डेट में री-एलोकेट या ट्रांसफर करना समझदारी है। इससे उलट, जब बाजार में गिरावट होती है, तो कम कीमत पर इक्विटी खरीदना लंबी अवधि के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। ऐसी रणनीति आपको इमोशनल आधार पर निवेश के फैसले लेने से बचाती है, जो अक्सर निवेश में नाकामी की वजह बनते हैं।
संतुलन निवेश
अगर आप अपने पोर्टफोलियो में इक्विटी और डेट का संतुलन बनाए रखने में विशेषज्ञता या समय की कमी महसूस करते हैं, तो हाइब्रिड म्यूचुअल फंड्स इसका एक बेहतर तरीका हो सकते हैं। ये फंड्स अपने आप ही आपके इनवेस्टमेंट को डेट और इक्विटी में बांटकर एलोकेट करने और समय-समय पर उन्हें रीबैलेंस करने का काम करते हैं. इसके अलावा, ये बाजार की अस्थिरता के दौरान स्थिरता भी देते हैं।
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इक्विटी और डेट में निवेशक का सही संतुलन लंबी अवधि में बेहतर रिटर्न दे सकता है। अपने निवेश के लक्ष्य और रिस्क लेने की क्षमता के हिसाब से आप एग्रेसिव हाइब्रिड म्यूचुअल फंड, बैलेंस्ड हाइब्रिड म्यूचुअल फंड या कंजर्वेटिव हाइब्रिड म्यूचुअल फंड का चुनाव कर सकते हैं।
पीपीएफ में निवेश करने का फायदा
पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (PPF) को भारत में सबसे सुरक्षित और लोकप्रिय इनवेस्टमेंट ऑप्शन्स में एक माना जाता है। इसमें आपको न सिर्फ निवेश करते समय टैक्स में बचत का लाभ मिलता है, बल्कि इस पर मिलने वाला रिटर्न भी पूरी तरह टैक्सफ्री है। इसका 15 साल का लॉक-इन पीरियड काफी लंबा है, लेकिन स्थिरता और सुरक्षा के साथ अच्छा रिटर्न देने की वजह से इसे लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट के लिहाज से हर पोर्टफोलियो में शामिल किया जाना चाहिए।
निवेश करना जरुरी है
बाजार में आई गिरावट ने यह याद दिलाया है कि निवेश में लॉन्ग टर्म नजरिया और सही रणनीति का महत्व कितना है. बाजार में आने वाले शॉर्ट टर्म उतार-चढ़ाव से घबराने की बजाय, निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो को मार्केट साइकल के हिसाब से बैलेंस करना चाहिए। यह बात हमेशा याद रखें कि इक्विटी और डेट का सही बैलेंस आपके पोर्टफोलियो को मजबूत और प्रॉफिटेबल बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी है।
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